कहीं बड़े बड़े भारी भीम भयानक अजगर सूर्य के ( की) किरणों में घाम लेते हैं जिनके प्यासे मुखों पर झरनों के कनूके पड़ते हैं-शोभित हैं-(पृ० ४०)
तब यह वर्णन इन श्लोकों का अनुवाद ही जान पड़ता है :
खिग्धश्यामाः क्वचिदपरतो भीषणाभोगरूक्षाः
स्थाने स्थाने मुखरककुभो झांकृतैर्निर्झराणाम् ।
एते तीर्थाश्रमगिरिसरिद्वर्तकान्तारमिश्राः
संहश्यन्ते परिचितभुवो दण्डकारण्यभागाः॥
निष्कूजस्तिमिताः क्वचिक्वचिदपि प्रोञ्चण्डसत्वस्वनाः
स्वेच्छासुप्तगभीरघोर भुजगश्वासप्रदीप्ताग्नयः।
सीमानः प्रदरोदरेषु विलसत्स्वल्पाम्भसो यास्वयं
तृष्यद्भिः प्रतिसूर्यकैरजगरस्वेदद्वः पीयते ।
१-इन श्लोकों का अनुवाद सत्यनारायण कविरत्न ने इस प्रकार किया है :
कहुँ सजल सस्य स्यामल रसाल,
कहुँ रूखो सूखो अति कराल ।
कहुँ कहुँ झरना झर-झर निनाद,
जहँ पूँजि करत दस दिसि सनाद ।
उन तीरथ आश्रम गिरि समेत,
सर सरित गर्भ-कानन निकेत ।
पूरब-परिचित सों अपन जोइ,
दीसत दंडक वन यँही सोइ ।।
निश्शब्द शांतिमय कहुँ अखंड,
वन-जन्तु नाद सों कहुँ प्रचंड ।