परंतु तीसरे प्रहर के स्वप्न से अस्वाभाविकता, जटिलता और असंगति का प्रवेश होता है। श्यामा के दोनों प्रेमी कमलाकांत और श्यामसुंदर में क्या सम्बन्ध है इस एक प्रश्न ने भी जटिलता ला दी है। इस जटिलता का समाधान स्वयं कवि ने भी नहीं किया उसने तो कमलाकांत से केवल इतना ही कहला दिया कि
श्यामसुंदर मुझै अपना प्राचीन मित्र जान कहने लगा कि संबंध, बस, जैसे देह और देही का― स्थूल और लिंग शरीर का हम लोगों में भेद नहीं था, इस मित्रता की कथा का स्वप्न नहीं हुआ इसी से इस स्थल पर नहीं लिखी. (पृ० १३१)
परंतु इसमें संदेह नहीं कि कमलाकांत और श्यामसुंदर दोनों एक से ही हैं― कवि, सहृदय, आदर्श प्रेमी; और सम्भवतः दोनों ही कवि जगमोहन सिंह की प्रतिकृति हैं। इन देह और देही तथा स्थूल शरीर और लिंग शरीर के सम्बन्ध से सम्बन्धित दोनों प्रेमियों के मिलन और प्रेमालाप की कथा जटिलता से आच्छादित है। जहाँ तक स्थूल शरीर रूप श्यामसुंदर के स्थूल कार्य-कलाप―प्रेम, विरह-निवेदन, अभिसार और समागम की कथा है वह तो सहज स्वाभाविक रूप में कह दी गई है, परंतु जहाँ देही अथवा लिंग शरीर रूप कमलाकांत के सूक्ष्म कार्य-कलाप की कथा आती है वहाँ स्वप्न की जटिलता और कल्पना की अतर्क्य असंगति प्रवेश करती है और कवि को विवश होकर 'उनमत्त काव्य' का सहारा लेना पड़ता है। तृतीय और चतुर्थ प्रहर के स्वप्न में अधिकांश ऐसी बातें दिखाई गई हैं जिनका सम्बन्ध या तो भारतेन्दु युग के तत्कालीन यथार्थ और कल्पना मिश्रित तथ्यों पर आधारित हैं अथवा पुराणों की वैज्ञानिक दृष्टि से अयथार्य और कपोल-कल्पना जान पड़ने वाली बातों पर। उदाहरण के लिए श्वेतदीप वाले की दूकान से एक जोड़ी चश्मा मोल लाने की बात का आधार 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' (चैत्र वैशाख सं० १९३७) की एक सूचना थी किः