बंकिमचंद्र ने आसमानी का रूप-वर्णन किया था उसी मूर्ति के प्रभाव से जगमोहन सिंह ने श्यामा का रूप-वर्णन किया। यथाः
पंकज का गुण न चंद्रमा में और न चंद्रमा का पंकज में होता है- तौ भी इसका मुख दोनों की शोभा अनुभव करता था. काली काली भौहैं कमान सी लगती थीं . धनुष का काम न था . कामदेव ने इन्हें देखते ही अपने धनुष की चर्चा बिसरा दी. जब से इसे भगवान् शंकर ने भस्म कर दिया तब से यह और गरबीला हो इसी मिस इनसे धनुष का काम लेता था-विलोचन इन्दीवर पै भ्रमरावली , मुख-मदनमंदिर के तोरनरागसागर की लहरै-ऐसी उस्की दोनों भौहें थीं, उसके नैनों की पलकें, तरुणतर केतकी के दल के सदृश दीर्घ किंचित् चटुल और किंचित् सालस शोभायमान थीं. नैनों की कौन कहे. ये नैन ऐसे थे जिस्में नै न थी, जिसे देख हरिणी भी अपने पिछले पाँव के खुरों से खुजाने के मिस कहतीं थीं कि तुम अपने गर्व को छोड़ दो . हृदयवास के आगार में बैठे मदन के दोनों झरोखे-रागसहित भी निर्वाण के पद को पहुँचाने वाले, कान तक पहुँचने में अवरोध होने से अपने लाल कोयों के मिस कोप दिखाते-अशेष जगत को धवल करते-फूले कमल काननों से गगन को सनाथ करते -सैकड़ों क्षीरसागरों को उगिलते- और कुंद और नीलोत्पलों की माला की लक्ष्मी को हँस रहे थे मानो मन के भाव के साक्षी होकर हृदयागार के द्वार पर खड़े हों . (पृ० २५-२६)
श्यामा के रूप-वर्णन में कवि ने प्राचीन कवियों की अच्छी अच्छी और चुभती हुई उक्तियाँ भी यथास्थान समाविष्ट कर दी हैं । उदाहरण के लिए कवि ने श्यामा के रूप-वर्णन में लिखा है :
नव जोबन नरेश के प्रवेश होते ही अंग के सिपाहियों ने बड़ी लूट मार मचाई इसी भौंसे में सभों के हौंसे रह गए किसी ने कुच पाये किसी ने नितम्ब बिम्ब-पर यह न जान पड़ा कि बीच में कटि किसने लूट ली. (पृ० २८)