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१६६ श्यामास्वप्न

सवैया

सुधि कीजिए श्यामा वही दिन की

जब अंक में अंक लगाय रही

अति दूबरे गात मृणाली मनौ

मथि डारे थके रतिरंग लही।

अधरासव सों छकि तुच्छ गिन्यो

जगके सिगरे सुख दुःख यही

जगमोहन पै नहिं जानो रह्यौ

बिसवास को डाको परैगो सही ॥१२।।

दोहा

बिसरै पै तेरी अली बतियाँ अजौ न हाय ।

सुधि करियो उन दिनन की जब तुम रहीं सहाय ॥१३॥

सोरठा

सीखी तनिक दया न दीन दयाल कहाय के।

श्यामा दर्शन दान निज जाचक कह दीजिए ॥१४॥

दोहा

करियो सुधि वा साँझ की मुहि वंशीवट धाम ।

तुहिं प्रतिदिन निरखत रहे शशि चकोर लौ श्याम ॥१५॥

कैसे सुधि करवाइए वा दिन की तुहिं हाय ।

जब न लख्यौ सरितापुलिन रहे रोय घर आय ॥१६॥

कुं०

तब दरसन ऐसे हते दिन में सौ सौ बार

दरसन ऐसे भए भाड़े परत पहार ।

श्राई परत पहार हार जिय घरिक बैठे

कीन्हे पूरब पाप कौन जे मो मग पैठे।