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श्यामास्वप्न

कहाँ वह डाइन, राजदूत, जेलर ! कहाँ का वैर और कहाँ का वह न्याया- धीश-सब के सब कहाँ लोप हो गए ? पर श्रोता सावधान हो . इसे केवल स्वप्न ही मत समझो, इसको सुन इसके सार को ग्रहण करो . इस सागर को मथन कर इसका सार अमृत ले लो . स्त्री-चरित्रों से बचो . बस इसी शंकराचार्य के कहे को स्मरण रक्खो--

"द्वारं किमेकं नरकस्य नारी।"

और महाराज भर्तृहरि के कहे को-

श्रावतः संशयानामविनयभवनं पत्तनं साहसानां,
दोषाणां सन्निधानं कपटशतमयं क्षेत्रमप्रत्ययानाम् ।
स्वर्गद्वारस्य विनो नरकपुरमुखं सर्वमायाकरण्डं,
स्त्रीरत्नं केन सृष्टं विषममृतमयं प्राणिनां मोहपाशः ॥

इति चौथे प्रहर का स्वप्न

पूस बदी गुरुवार तीज दिन शिशिर रायपुर माहीं ।
नैन वेद ग्रह चंद्र वर्ष यह संवत्सर हरषाहीं ।
गद्यपद्यमय विरचि कथा शुभ श्यामापद परसादा ।
"श्यामास्वप्न" नाम की पोथी प्रकटाई बहु स्वादा ॥
पढ़ि यह सादर ओर छोर तै वुधजन कहहिं सराही ।
गुन अरु दोष बताइय छल तजि खलहू छमहु ढिठाही ।
या जग नारि नैन के शर सों को बचि रह्यौ बतायो।
आँखिन देखि पियत घट विष यह सो मदिरा बौरायो।
जान दोष सब संत असंतहुँ चूकत या मग पाए ।
ऐसो और भरम नहिं लखियत पढ़े गुनेहू ध्याए ।


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