मुझे भी नहीं मालूम कि मैं क्या क्या कह गया पर मेरे सब वाक्य चंडी ने ध्यान धर के सुने और हँस के बोली-"ठीक है बेटा--ठीक है तेरा कहा सब आगे आता है और धीरे धीरे आगे आवेगा . मैं तेरी भक्ति पर प्रसन्न हुई-बर-माँग"-
मैंने फिर वही कहा "यदि तू प्रसन्न है तो मेरी वंदना की विनय पूरी कर--श्यामसुंदर का पता बता दे और श्यामसुंदर को श्यामा से मिला दे" चंडी हँसी और बोली 'आँख बंद कर मैं तुझे क्षण भरे के लिए श्यामसुंदर को दिखा दूंगी, पर चिंता न कर, श्यामसुंदर कुशलपूर्वक द्वीपांतर में है . श्यामा के पीछे उसने कोटि क्लेश सहे और आश्चर्य नहीं कि कुछ और सहै पर यह तू विश्वास कर कि-- “
"सुख अंत दुख दुख अंत सुख दिन एक से कबहुँ न र हैं
गति जगत जनके भाग की रथ चक्र सी एहि हित क हैं"
एक दिन श्यामसुंदर के दिन फिरेंगे, वह श्यामा को अवश्य पावैगा. क्योंकि तुलसीदास से सिद्ध पुरुषों के वाक्य क्या निष्फल हो जायँगे ?
नापर जाकर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलै न कछु संदेहू ॥"
मैंने कहा--"ठीक है पर
श्यामा के कपट छल छिद्रम छछंद मंद
निर्दय निरास कुल कानि की निदानिया।
सुंदर सनेह सब विधि सो सकोच भरो
साँची सी पिरीति श्यामसुंदर लुभानिया ।।
एक की हंसी फाँसी मौत एक दूसरे ही की
कहत कहत जीभ थकित यकानिया ।
अंत एक सबको बिचारि जगमोहन जू
श्यामा श्यामसुंदर की चलैगी कहानिया ॥"