पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/१९४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५४
श्यामास्वप्न

"ऊँ ठं ठं ठं बाराह के दाँत की तेलिन-वशिष्ठ की बेटी, नारद की भतीजी-तीजी-भीजी - भांजी-कड़ी-कठोर-बिनालोम-संकीर्ण- रोती धोती-कनफटा देव का प्रताप-भैरव की (का सराप-गंगा की लहर-लक्ष्मी का पहर-भागीरथी की नहर-बुझ-बुझ-सुझ-फुः फाः फीः बाबा की चेली--बाई की अधेली--फलाने की बहू आराम आराम-ऊँ फट् स्वाहा . कुरोमंत्र ईश्वरो वाचा-दुहाई देवी बड़े दाँत वाली की बुझजा-बुझजा--नहीं तो गाड़ देंगे."

पानी फेक दिया-आग बुझ गई-कौव्वे उड़ने लगे-तुम्हारी भी पारी आती है-नशा खूब चढ़ा खूब जोर किया .

वह देखो अटारी पर मोर ने बांग दी . मुरगा पी पी करने लगा- मैना कांव कांव करने लगी . विष्णु की स्त्री चमगिदड़ी हो गई - मालती चाँदनी सी छिटक गई जो चाहे सो आवागमन करै , फीस दो टके रात . कच्चे गऊ का मांस लटकने लगा--- -इसी के बंदनवारे बंध गए- श्यामापुर यवनपुर हो गया-पर अंग्रेजी राज में यह अनर्थ कैसा-ईशान कोन पर सूर्योदय हुआ दक्षिण से चंद्रमा का रथ चला-लगे तारे टूटने हाथी बोल उठे-कछुए की पीठ गरम हो गई-शुक्र और मंगल -गाज गिरी-अर्राटा वीता [-आकाश फट पड़ा-सब कलाई खुल गई-बादल छा गए-ऐसे काले जैसे अफीम-बीच में चंद्रमा निकल आए-क्या विचित्र लीला थी! नदी में एक भारी मछली तैरती थी-तैरते तैरते तट पर आई. ज्यौंही बद लेने को मुह खोला एक बाला जो घाट पर नहा रही थी फिसल पड़ी और उसका पाँव उसके मुख में समा गया . मछली उसे लील गई , मुह बंद हो गया-फिर नदी में बुड़की लगा गई . संध्या हुई घर के लोग बाग टोला परोस में पूछ पाछ करने लगे . पता कहीं नहीं लगा, लगै कैसे उसे तो एक मच्छ महाराज भच्छ गए थे-कच्छ राज अपने परों पैरों) की छाया करते थे-जिस्में कोई वंशी डालके कहीं मच्छ समेत न बझा ले. मैंने देखा कि मच्छ बड़ी भी टूटे-