महादेव जी ध्यान धरके कहने लगे "इसका सीनेवाला तुम्हें तुंड- दंष्ट्रा नामक देश में मिलेगा वह यहाँ से सौ कोस पर दक्षिण दिशा में रहता है ." कपोत पल भर में उड़ कर पहुँच गया . दंष्ट्राकराल का राजा विरागचंद्र गौतममुनि का चेला था . वात्स्यायन का भाई- वसिष्ठ का बाप-नारद का बहनोई और विश्वनाथ का गुरुभाई. विराग- चंद्र से भी यही कहने लगा विरागचंद्र ने अपने पूर्वोक्त ज्ञातिबंधुओं को बटोरा मंत्र किया . सूचीकार के हूँढ़ने को ए सब बहुत इधर उधर दौड़े . पर हार मान कर घर बैठे . जब ऐसे ऐसे मुनियों का बल विफल हो गया तो मनुष्यों की क्या गणना थी ! अब क्या करता ? गोमुखी से हाथ निकाला उक्त मंत्र का जप करते करते १० वर्ष बीत गए . एक वर्ष होम करते बीता . बारहें बरस मंत्र सिद्ध हो गया . इंद्र के अखाड़े का ऐरावत गजराज झूमता हुआ आया . यह पलकदंता हाथी मत्त था . धर्म का (की) ध्वजा बाहर के दांतों के (की) नाईं निकाले पर भीतर के दसनों के तुल्य कपट और विश्वासघात तथा अधर्म का पक्ष दबाए उपस्थित हुआ . मैं इसे देख उठ खड़ा हुआ . यह उपेंद्र का गजराज था . भला क्यौं इसे देख आसन न देता . नहीं तो कहीं दुर्वासा सा कोई आकर शाप दे देता तो मैं क्या करता . गज के दोष से दुर्वासा मुनि ने इंद्र को शाप दे ही दिया था. भला क्या इंद्र ने दुर्वासा की दी माला भूमि पर फेक दी थी या गज ने जो सामान्य पशू था ?- -पर बड़ों को कौन कह सकता है चाहै जो करें, चाहै आकाश में महल बनवावैं उन्हें तो "रवि पावक सुरसरि की नाई" है. बाबा जी नई बालाओं को पूरा भोग भी देते हैं तो भी बाबा जी ही बजते हैं-कहावत है कि "माई को माई भई-माई बुलावन जात है" चमारिन , डोमिन, पासिन, धिर- कारिन, धोबिन, तेलिन सभी गंगा के तुल्य हैं-
"श्राशंखचक्रांकितवाहुदंडा गृहे समालिंगितबालरण्डा ।
मुण्डा भविष्यन्ति कलौ प्रचण्डाः-"