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श्यामास्वप्न

सुंदर पढ़ते पढ़ते खड़े हो गए गली रुक गई . मैंने कहा "चलिए मुझे जाने दो", यह सुनकर चिहुँक से पड़े बोले “कौन है ? (ऊपर देखकर ) श्यामा मैं पुस्तक पड़ रहा था; तू कहाँ से आगई प्रसंग टूट गया".इतना कह हट गए, मैंने कुछ भी उत्तर न दिया और सूधी घर को चली गई. श्यामसुंदर ने भी अपने घर का मग लिया . भगवान का दर्शन किया और उधर से सब मंदिरों की झाँकी झाँक फिर लौट आए इतने में आठ बज गए. रात सापिन सी आई. बिना साथिन के काटना था पर उलटा वही इन्हें काटने लगी. सेज बिछी थी. मैं भी कुछ व्यारी करके चिंता में मग्न- -गरमी के दिन तो थे ही अटारी पर वृन्दा और सत्य-वती के साथ सोने के लिए बिछौने बिछाकर लेटी . चाँदनी छिटकी थी, मैं भी चाँदनी की शोभा आपनी चाँदनी पर से देखती थी, वृन्दा और सत्यवती दोनों मेरे पास बैठी थीं और कुछ बात चीत कर रहीं थीं .नीचे सुलोचना अपने आंगन में सोई सोई वृंदा से और कभी कभी मुझसे बातें करती. जहाँ मैं सोई थी वहाँ से श्यामसुंदर के बिछौने स्पष्ट दिखाते थे. श्यामसुंदर ने उस दिन कुछ भी भोजन नहीं किया और चुप आकर सूनी सेज पर सो रहे. थोड़ी देर में रामचेरा और उद्धव दोनों पहुँचे. एक पंखा करने लगा और दूसरा पांव मीजने लगा. श्यामसुंदर ने ऊपर देख कर कहा "कुछ मत करो-न हमैं पंखा चाहिए न संवाहन तुम लोग जावो" यह सुन रामचेरा और ऊधो दोनों सूधो मग धरे ' बाहर आ बैठे, झरप पड़ी थी . श्यामसुंदर अकेले लेटे थे, इतने में ऊधो ने जा हाथ जोड़कर कहा

"महाराज एक सितारिया आया है और चाहता है कि महाराज को अपना गुन दिखावै यहीं बाहर खड़ा है जैसी आज्ञा हो."

श्यामसुंदर ने सुन लिया, कुछ सोच कर कहा “आने दो पर मकरंद को भी बुला लेना" ऊधो बोला “जो हुकुम" यह कह मकरंद और सितारिया को साथ ले फिर जा उनके सन्मुख बोला "महाराज, ए लोग