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श्यामास्वप्न

कछु न सुहात बात सुनु एरी मात पिता परिवार ।
हिय में बसत एक उनकी छबि वे पवि हृदय विचार ॥३॥
हँसनि कहँ नि बतरानि माधुरी खटकत जिय दिन रैन ।
पै उनके बिनु कल न परै पल अलि औरौ निशि चैन ॥४॥
सोवत जगत डगत मनमोहन लो चन चित्र मझार ।
आधीरात सुरति जब श्रावति हूलै विरह कटार । ५॥
कैसी करौं सुलोचनि वृंदा-कट श्यामा रात ।
कही सुनी जो श्यामसुंदर ने सो खटकत दिन जात ॥६॥

यदि आज आ गए तो अच्छा होगा--नहीं तो मेरा दुःख फिर दूना हो जायगा--पर देख अभी मेरी बांई आँख और भुजा दोनों फरके, सगुन हुआ अब चिंता गई--तो चल शीघ्र ही स्नान करके घर चलैं नहीं तो माँ खीझैगी . इतने में काक का बोल सुन श्यामा (मैं) ने कहा--

"सुनि बोल सुहावने तेरे अटा यह टेक हिए में धरों पै धरों।
मढ़ि कंचन चोंच पखौवन ते मुकता लरें गूथि भरों पै भरों ॥
तुहि पाल प्रवाल के पांजरा में अरु औगुन कोटि हरों पै हरों ।
बिछुरे पिय मोहि महेश मिलें तुहि काक ते हंस करों पै करों ।।"

सुलोचना ने कहा--"आज श्यामसुंदर का आना ध्रुव है टोले में तो कल्ह से उनके आने की चर्चा हो रही है." वृंदा सुलोचना और मैं नहा धो घर आई--गृह के कृत्य किए--और ऊपर की खिरकी से उनकी अवाई की प्रतीक्षा करने लगीं--भोर हुआ, चिरैयां चहचहाने लगीं, गाय और बछरू का शब्द सुनाने लगा . अहीर लोग गैयाँ दुहने लगे . अरुणो. दय हुआ . मारतंड का मंडल दिखने लगा . लोग भैरवी गाने लगे, सब लोग अपने अपने इष्टदेवता की मूर्ति पूजते थे पर मैं श्यामसुंदर


  • कही श्यामसुदर ने जो कछु सो खटकत हिय बात ।' यह भी पाठहै-