जलवायु दोनों भले नहीं इसी से दूसरे ही दिन कूच कर गए . दिन तुम्हारे ही पत्र की आशा लगी रही.'
"शनिवार का दिन वाणमर्यादा में बीता, यहाँ से पर्वत पाँच कोस पर रहे . यहाँ अच्छा सरोवर जिसके किनारे कदली का उपवन है शोभित है, भगवान् भवानीपति का मंदिर यहाँ के ग्रामीणों को अवलंब है . यहाँ के 'रसालाराम' में तंबू तना था . ग्राम भी कुछ छोटा नहीं और ग्रामाधिप भी ऊँचे जात का पुरुष है . आज होली जरी-मेरा शरीर तुम्हारे बिन आप होली हो गया है . झोली में अबीर भर भर हमजोली की भीर में घुस रसाल रसाल कबीर गाते हैं . इस बन में होली का उत्सव कुछ विचित्र सा जनाता है, जैसे दूध में मिरचा, विलायत के गिरिजा- घर में कुरान की आयत का पढ़ना या रामचंद्र के मंदिर में प्रभु ईशु- मसीह का नाम लेना और बेंड बजाना तथा मसजिद में शंखध्वनि का होना इत्यादि जैसे असंभव और असंगत जनाते हैं वैसे ही इस देश में ऐसे उत्सव थे ."
"रविवार के दिन मैंने चातकनिकुंज जाने का विचार किया . यह उत्कल देश का द्वार है और यहाँ का स्वामी बड़ा नामी पुरुष है, यह देश तुम्हारे पूर्व पुरुषों का निवास था इसी से वर्णन नहीं किया . तुमने अपने माता पिता से इसका सब वृत्तांत सुन ही लिया होगा- निदान यहाँ से प्रातःकाल ही को रथ पर बैठा और सायंकाल तक देख भाल फिर बाणमर्यादा को लौट आया . इस ग्राम से यह केवल चार इस राज्य में रसाल के रसाल रसाल विशाल वृक्ष बहुत हैं , इसका नाम मैंने कोकिलकुंज रख दिया है . इस ग्राम का स्वामी जब मैं गया उपस्थित न रहा पर उसके प्रतिनिधि ने बड़ा सत्कार किया और यहाँ के मुख्य मुख्य निवास और कार्यालय दिखलाए . वश का सघन वन इसके चारों ओर लगा है और राजा के महल एक पर्वत पर पर कोस पर था.