बहादुर ने भी वार्ड स स्कूल कीन्स कालेज में शिक्षा पाई थी और ठाकुर साहब के सहपाठी थे । कूचबिहार में ठाकुर साहब ने दो वर्षों तक बड़ी योग्यता से कार्य सम्पादन किया, पर रोग के कारण अंत में वहाँ से अवकाश ले घर लौट आए। रोग से उन्हें अंत तक छुटकारा नहीं मिला और केवल ४२ वर्ष की अल्प आयु में उन्होंने ४ मार्च सन् १८९९ में एक पुत्र और एक पुत्री छोड़ परलोक की यात्रा की ।
ठाकुर साहब मुख्य रूप से कवि थे और बचपन से ही उन्होंने कविता करना प्रारम्भ कर दिया था । 'देवयानी' के अंत में उन्होंने अपनी रचनाओं की एक तालिका दी है जो इस प्रकार है :
प्रथम पंजिका अँगरेजी में पुनि पिंगल ग्रंथ बिचारा ।
करै भंजिका मान विमानन प्रमिताक्षर कबि सारा ॥
बाल प्रमाद रची जुग पोथी खची प्रेम रस खासी ।
दोहा जाल प्रेमरतनाकर सो न जोग परकासी ॥
कालिदास के काव्य मनोहर उल्था किये बिचारा ।
रितु संहारहिं मेघदूत पुनि संभव ईश कुमारा ॥
अंत बीसई बरस रच्यो पुनि प्रेमहजारा खासो ।
जीवनचरित रामलोचन को जो मम प्रान सखा सो ।
सज्जन अष्टक कष्ट माहिं मैं बिरच्यौ मति अनुसारी ।
प्रेमलता सम्पत्ति बनाई भाई नव रस भारी ॥
एक नाटिका सुई नाम की रची बहुत दिन बीते ।
अब अट्ठाइस बरस बीच यह श्यामालता पिरीते ॥
श्यामा सुमिरि जगत श्यामामय श्यामा बिनय बहोरी ।
जल थल नभ तरु पातन श्यामा श्यामा रूप भरो री ॥
देवयानि की कथा नेहमय रची बहुत चित लाई।
श्रमणबिलाप साप लौ कीन्ही तन की ताप मिटाई।।