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नम: श्री हरिश्चन्द्राय।

उपक्रम ।

आजकल श्रावण का महीना है, वर्षारितु के कारण भू मण्डल एवं गगन मण्डल एक अपूर्व शोभा धारण कर रहे हैं ; जिसे देख के पशु पक्षी नर नारी सभी आनन्दित होतेहैं । काम धन्धा बहुत अल्प होने के कारण सब ढंग के लोग अपनी २ रुचि के अनुसार मन बहलाने में लगे हैं, कोई बागौ में झूला डाले मित्रों सहित चन्द्रमुखियों के मद माती आखों से हरियाली देखने में मग्न है ! कोई लंगोट कसे भंग खाने व्यायाम में संलग्न है ! कोई भोर मांझ नगर के बाहर की वायु सेवन ही को सुख जानता है ! कोई स्वयं तथा ब्राह्मण द्वारा भगवान भूतनाथ की दर्शन पूजनादि में लौकिक और पारलौकिक कल्याण मानता है ! संसार में भांति २ के लोग हैं उनकी रुची भी न्यारी है भक्त भी एक प्रकार के नहीं होते कोई बकुला भक्त हैं अर्थात् दिखाने मात्र के भक्त पर मन जैसे का तैसा ! कोई पेटहुन्त भक्त हैं अर्थात् यजमान से दक्षिणा मिलनी चाहिए और काम न किया पूजाही सही ! कोई व्यवहारी भक्त हैं अर्थात् ' या महादेव बाबा ! भेजना तो छप्पन करोड़ की चौडाई ' द्वन्दों में वह भी है जो संसारी पदार्थ तो नहीं चाहते पर मुक्ति अथवा केलाश धाम पर मरे धरे हैं । कोई भगत जी हैं जो रास्ते में श्री मन्दिर में आंखें सेंवाने ही को पूजा की भाड़ पकड़तै हैं । पर हम इन भक्तागस्सों की