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समर्पण
प्यारे भोलानाथ !
तुम्हारा भोलापन तो मूर्तिपर पांव रख के धंठा कोरने वाले चोर को चाल समर्थक की गति देने इत्यादि में प्रसिद्ध ही था पर हम भी तुम्हें ऐसे ही पागल मिले हैं जो यह जान के भी कि सब कुछ तुम्हारा ही हैं समर्पण किए बिना नहीं मानते तथा किसी काम के न होने पर भी तुम्हारे कहलाने को मरे जाते हैं यदि इतने पर भी न अपनाओ तो क्या बात है ।
आभपूर, श्रावण शुक्ला १४.
श्वीवरीचंद्राब्द ४
तुम्हारा ही
प्रेमदास ।