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अथच परम भागवत कहना छोड़ दीजिए ! नहीं तो सच्चा शैव वही हो सकता है जो वैष्णव मात्र को अपना देवरा समझे । जब परम वैष्णव महादेव हैं तो साधारण वैष्णव देव क्यों न होंगे ? इसी प्रकार यह भी समझने की बात है कि गंगाजी परम शक्ति हैं ! इस से शाक्तो के साथ विरोध रखना भी अनुचित है ! यद्यपि हमारी समझ में तो आस्तिक मात्र को किसी से द्वेष रखना पाप हैं ! क्योंकि सब हमारे जगदीश ही की प्रजा हैं ! इस नाते सभी हमारे बांधव हैं ! विशेषत: शैव समूह को वैष्णव और शाक्त लोगों से विशेष संबन्ध ठहरा अतः इन्हें तो परस्पर सदा मित्रता से रहना चाहिए ! और सुनिए गंगापत्य हमारे प्रभु के पुत्र को ही पूजते हैं अतः इन के लिये भी सदा शिव से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि 'हरहु कृपा शिशु सेवक जानी' सूर्यनारायण शिवशंकर का नेत्रहो हैं ' बंटे् सूर्यो शशांक बन्हि नयन ' फिर क्या नयन शरीर से अलग हैं जो तुम सूर्योपासकों को अपने से भिन्न समझते हो ? भारत का क्या ही सौभाग्य था यदि यह पांचो मत एकता धारण कर के पंच परमेश्वर बनते ! अस्तु अपने२ मत का तत्व समझेगे तभी सही ! शिवमूर्ति में अकेली गंगा कितनी हितकारिणी हैं इस पर जितना सोचियेगा उतना हौ कल्याण है ! अब दूसरी छबि देखिए ।

बहुत सी मूर्तियों के पांच मुख होते हैं जिस से यह जान पड़ता है कि यावत् संसार और परमार्थ का तत्व तो