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सब के हमारी ही भांति हाथ पांव इत्यादि हैं तो हमारा सर्वेत्कृिष्ठ बंधु कैसा होगा ? बस इसी मूल पर सब सावयव मूर्तियां मनुष्य के से रूप को बनाई जाती हैं ! विष्णुदेव की सुंदर सौम्य प्रतिमा प्रेमोत्यादनार्थ हैं क्योंकि खबसूरती पर चित्त अधिक लगता है ! भैरवादि की भयानक प्रतिकृति इस सूचना में अर्थ है कि हमारा प्रभु हमारे शत्रुओं के हेतु भयकारक है अथवा हम उस की मंगलमयी सृष्टि में बिघ्न करेंगे, तो वह कभी उपेक्षा न करेगा ! क्योंकि वह क्रोधी है ! इसी प्रकार शिवमूर्तियों में भी कई विशेषता है जिन के हम यह उपकार लाभ कर सकते हैं । शिर पर गंगा होने का यह भाव है कि गंगा हमारे देश की संसार परमार्थं की सर्वख हैं ! पापी पुण्यात्मा सब की सुखदायिनी हैं !! भारत के सब संप्रदायों में माननीया हैं !!! ( गंगा जी की महिमा अनेक ग्रंथों में वर्णित है ! जल तथा बालुका अनेक रोग नाश करती है ! अनेक नगरों की शोभा अनेक जीवों को पालना इन्हीं पर निर्भर है ! मरने पर माता पिता सब छोड देंगे पर गंगा माई अपने में मिला लेंगी इत्यादि अनेक बातें परम प्रसिद्ध हैं अतः इस बिषय को यहां बहुत न बढ़ा के आगे चलते हैं ) और भगवान भवानी भावन विश्वव्यापी हैं तो विश्वव्यापक की मूर्ति कल्पना में जगत का सर्वोपरि पदार्थ ही शिरस्थानी कहा जा सकता है ! पुराणों में गंगा जी की उत्पत्ति विष्णु भगवान के चरणारविंद से मानी गई है और शिव जी को परम वैष्णव लिखा है उस परम वैष्णवता