पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९६

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शृङ्गारनिय। opas अथ वियोग शृङ्गार-दोहा। बिन मिलाप सन्ताप अति सो वियोग शृङ्गार तवन हावडू तेहि कहैं पण्डित बुद्धि उदार ॥ ताके चारि बिभाव हैं दूक पूरवानुराग बिरह कहत मानहिं मिलत धुनि प्रबास बड़ भाग अनुरागी बिरही बहुरि मानौ प्रोधित मानि । चहूं बियोग विधानि तें चारो नायक जानि ॥ पूर्वानुराग । पूरबानुराग जहँ बढ़े मिले बिन प्रौति आलम्बन ताको गनै सज्जन दरसन रौति।२८४॥ दृष्टि श्रुतौ है जाति के दरसन जानो मित्र दृष्टि दरस परतछ सपन छाया माया चित्र प्रत्यक्ष यथा -- कवित्त । आली दौरि दरस दरस लेहि लेरी इन्दु. बदनौ अटा में नँदनन्द भूमि थल में । देखा- देखी होतही सकुच छूटी टुहुन को दोऊ दुहूं हानि विकाने एक पल मैं । टुहूं हिय दास बदरी अरौ मैन सर गासी परी दिढ़ ग्रेम सौ ।