पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/९

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शृङ्गारनिया सीनन यो निकौ । मुसुक्कात इतै पर दास सबै गुरुलोगनि के ढिग निकसै ॥ गुनहीन इरा उर में उपय्यो तिहि बीच नखच्छत छ निकसै। राह पावत हैं ब्रजराज अली तन लाज को लेस न छोनिकस ॥ २५ ॥ उपयति पृष्ट यथा । यह रौतिन जानी इतौ तब जानी जाज लों मौलि गई निबहो। नहि जायगी मोसों सही उतही करो जाय कै ऐसी ढिठाई सही॥ पहि- चान्यो मले बिधि दास तुमैं अमला-जन को अब लाज नहौ । मनभावही की न करी डर जो मनमाई को दौर के बाह गही ॥ २६ ॥ इति नायक । अध नाविक लक्षण-दोडा। पहिले प्रातल धर्म तें चिबिधि नायिका जानि। साधारन बनिता अपर सुकिया परकीयानि ।। साधारण नायिका लक्षण । जामे स्वकिया परकिया रौतिन जानौ जाय । सो साधारण नायिका बरनत सब कविराय॥