पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/८६

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शृङ्गारनिर्णय ल्यो नंदरानी है ! सिगरी भगानी पहिचानी प्यारी मुसकानी छूटिगो सकुच सुख लूटि सर. सानी है ॥ २४६ ॥ हे लिहाव मवैया। नाते की भारी सिखाय के सारी को पौंजरो ले पिय के कर दौने । मैना पढ़ो सुनते यहि दास जू बार हजार उहे रट लौने ॥ बूझति आली हसौंहैं कहा कहैं होत खिसौं हैं लला रस भीने । आपु अनंद भरी हँसिबो करें चञ्चल चार दृगञ्चल कौने ॥ २५० ॥ ललितहाव लक्षण दोहा! ललितहावबरन्योनिरखि तियकोसहज सिंगामा अमरन पट सुकुमारता गति सुगन्धता चार ॥ यथा वित्त पसाज से पावन मैं गूजरो जराउन को घाँ- घरे को घेर दौठि धेर धेर रखिया । दास मन मोहिनी मनिन के बनाव बने कण्ठमाल कञ्चुकी हवेलहार पखिया । अंगन की जोति जाल फै. . .