पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/६०

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शृङ्गारनिय। m ॥ खंडिता लक्षन दोहा। प्रौतम रैनि बिहाय कहुँ जाप आवे प्रात सुहै खंडिता मान में कहै करै कछु बात यथा कवित्त । लोचन सुरंग भाल जावक को रंग मन सु- खमा उमंग अरुनोदै अवदात की । भारती को अंगराग लाग्यो है समाग तन छबि सी छ- पन लागी महातम गात को ॥ दास बिधुरेख सो नखछत सुबेख ओठ अंजन को रेख अलि- नौ सौ कंजपात की। प्यारे मोहि दोन्हों आनि दरस प्रभात प्रभा तनमैं लै दरस पौधे के प्रभात कौ ॥ १७६ ॥ धीरा यथा। अंजन अधर ध्रुव चंदन सुबेदी बाहु सुखमा सिंगार हास करुना अकस की। नख है न अंग राग कुंकुम न लाग्यो तन रौद्र बीर भयवारी भलक बहस की। पलन की पीक पर बसन हरा अलोक दास छवि धनः अदभुत संत जस