पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/४०

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शृङ्गारनिय । ३६ भावस्थान अभाव यथा। था। आजलौ तौ उत दूसरो प्रानी कोजना हुतो वह बावरो बौनो । प्रावति जाति अवार स. बार बिहार समै न हुतो डर कौनो ॥ दास बनै अब क्यों पिय भेंट सहट के जोग न दूसरो भोनो। बैहि बिचार यो बाल मनैमन बावन को सुनि भावन गौनी ॥ ११५ ॥ संकेत निःप्राप्यता समीप निकंजन कुंजविहारी गये लखि साझ पगे रसरंग । दूत बहु योस में आय के चाय नवेली को बैठि लगाई उछग ॥ उड़ी तई दास बसी चिरियां उडिगो तिय के चित वाही के संग । बिछोह ते बुन्द गिरे सुश्रा के सु वाके गुने गए प्रेम उमंग ॥ १६ ॥ विभेद लक्षण - दोहा। मुदिता अनुसयनाहु में विदग्धाहु मिलि जाय। सबल भाव इहि भाति बहु बरनत है कबिराय॥ मुदिता विदग्धा यथा - सवैया। आवत सोमवती सब संगही गंगनहान