पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/३८

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शृङ्गारनिर्णय है खुलि नाचे । ओठ पके कुंटुरू सुक्क नाक मै काहे न देखिये छोट सो बांचे ॥ आज अली मुकुराम कपोलनि कैसो भयो मुरचो जिहि माचे । दै यह चंद उरोजन दास जू कौन किये ससिसे खर सांचे ॥ १०८।। हेतु लक्षन यथा सवैया। नैन नचौहैं हसों हैं कपोल अनंद सों अंग न अंग अमात है । दास जू सेदन सोम जगी पुरै ग्रेम पगौ सौ ठगो ठहरात है। मोहिं भुलावै अटारी चढ़ौ कहि कारोघटा बकापांति सोहात है। कारी घटा बकांति सखी यहि भांति भए कहि कौन को गात है . १०६ ॥ धोरत्व यथा सवैया। सब सूझे जो तोहि तौ बूझै कहा बिन का. जहि पौछ रही परि है। जिहि काम को कैवर कारो लगै सो टुचारि को दासजू क्यों डरिहै । हरिबेनी गुही हरि एड़ी छुहौ नव दंत को दाग दियो हरि है। कहतौ किन जाय जहां कहिवे कोज कोह के मेरो कहा करिहै ॥ ११ ॥ । 8