पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/२३

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२२ शृङ्गारनिय। दास कुच कोक हवली तरंग पारों भौंर नाभि- थल मैं। अचल नितम्बन पै जंधन कदलिखंभ बाल प्रगतस्त वागे लाल मखमल में संपूर्ण मूर्ति वर्णन सवैया दास लला नवलाव देखि के मो मति है उपमान-तलासी । चंपकमाल सी हेमलता सौ कि होय जवाहिर की लवलासी दीपसिवा सौ मसालप्रमा सौ कहीं चपला सौ को चंद कला सी। जोति सो चित्र को पूतरौ काढ़ौ कि हादी मनोज हि कि अबाला सौ ॥ ६१ ॥ ति साधारण नायिका। स्वकीया लक्षण दोहा। कुलजाता कुलभामिनी स्वकिया लच्छ न चार । पतिव्रता उद्दारि नो माधुर्जालंकार ॥ ६२ ॥ श्री भामिन के भौन जो भोगभामिनी और तिनहूं को खकियाहु मै गर्ने सुकबि सिरमौर ॥ पतिव्रता यथा सवैया। खान तें पौ को सुखी लखै आप al