पृष्ठ:शृङ्गारनिर्णय.pdf/११

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शृङ्गारनिर्णय। दीप्ति वर्णन भारसी को प्रांगन सोहायो छबिछायो न- हरनि में भरायो जल उज्जल सुमन-माल । चां- दनौ बिचित्र लखि चांदनी बिछौना पर दृरि कै चंदोअन को बिल से अकेली लाल । दास आसपास बहु भातिन बिराजै धरपदा पोख. राज मोती मानिक पदिक लाल । चंद प्रति. बिम्ब ते न न्यारो होत मुख जो न तार प्रतिबिम्ब ते न न्यारो होत नख जाल ॥ ३२॥ पग वर्णन। पाखुरौ पदुस कैसी आँगुरी ललित तैसी कि- रनैं पटुमराग-निन्द क नखन में। तरवा मनो- हर सी एडी मृटु कौहर सौ सोहर लखाई को न लैहै लालगन में ॥ अतन ते आंक रखि अतन बषि देत भानु कैसो भाव देख्यो तेरे घरनन में! आंक रखि लीन्हो है सोहाग सब सौतिन को दौनो है बरषि अनुराग पिय मन में ॥३३ जानु वर्णन । करम वतावै ते करमही की सोभा हित T wiwiteit