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शिवा बावनी

शिवा बावनी हाथिन के हौदा उकसाने, कुंभ कुंजर के, भौन को भजाने अलि, छूटे लट केस के। दल के दरारन ते कमठ करारे फूट, केरा के से पात विहराने फन सेस के ॥२॥ भावार्थ रण-पताकाओं के उड़ने और हाथियों के घंटे बजने से मारे डर के देश देश के छोटे बड़े राजे महाराजे शिवा जी की प्रचंड फ़ोज के सामने न ठहर सके। महाराज शिवा जी के डंके की अावाज़ से पहाड़ भरभरा कर गिर पड़े। गाँव और शहरों के लोग अपना अपना घर छोड़ कर भाग गये। हाथियों के हौदे ढीले पड़ गये। हाथियों के मस्तक के मद पर उड़ते हुये भौर अपने अपने घर भाग गये। शत्रुओं को त्रियों के बाल छूट पड़े। फ़ौज की धमक से महा कठोर कच्छप के टुकड़े टुकड़े हो गये और शेष नाग के सहस्र फन केले के पत्तों की तरह फट गये। टिप्पणी यहां पूणेपमा अलंकार है। कच्छप-पुराणोक्त एक कछुवा, जिस पर पृथ्वी को धारण करने वाले शेष नाग रहते हैं। सेस शेप; एक हज़ार फन वाला सर्प, जो पृथ्वी को धारण किये रहता है। प्रेतिनी पिसाचरु निसाचर निसाचरिहू, मिलि मिलि आपुसमें गावत बधाई है।