यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

y शिवा बावनी। कवित्त-मनहरण । साजि चतुरंग बीर रंग में तुरंग चढ़ि, . सरजा सिवा जी जंग जीतन चलत है। भूषन भनत नाद बिहद नगारन के, नदी नद मद गैबरन के रलत है। ऐल फैल ग्वैल भैल खलक में गैल गैल, गजन की सैल पैल सैल उसलत है। तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि, थारा पर पारा पारावार यों हलत है॥१॥ भावार्थ भूपण शिवाजी की युद्ध-यात्रा का वर्णन करते हैं- शिवाजी बड़े ही उत्साह से अपनी चतुरंगिणो (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल युक्त) सेना तैयार करके घोड़े पर सवार हो युद्ध में विजय प्राप्त करने जा रहे हैं । बेहद नगाड़ों का शब्द हो रहा है । मतवाले हाथियों के मस्तक से मद बह कर नदी नद में मिल रहा है, अर्थात् मठ की नदी बह रही है। फोन के कोलाहल से संसार में गली गली हलचल मच