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शिवा बावनी

शिवा बावनी कोई बच सका है। शिवाजी का वह रंग है जिस ने मौरंगजेब की एक भी न चलने दी। टिप्पणी सूरत (गुजरात) को शिवाजी ने संवत १७२१ और १७२६ में दो बार खूा था। यहां काव्यलिङ्ग अलङ्कार है । काव्य में कथित प्रसंग का ठीक ठीक परिचय कराने से काव्यलिङ्ग अलङ्कार कहलाता है। यहां पर 'केनिक देश दल्यो, कह कर दक्षिण, गुनरात, सूरत आदि देशों का पीछे से नामोल्लेख किया गया है। यह छन्द मालती सवैया है-इसके प्रत्येक चरण में ७ भगण और अंत में दो गुरु होते हैं। चापि के दबा कर । नाख्यो नष्टकिया । सो रँग=बह रंग, प्रताप । सूबा निरानँद बादर खान गे, लोगन बूझत ब्यौंत बखानो। दुग्ग सबै सिवराज लिये धरि, चारु बिचारु हिये यह बानो ॥ भूषन घोलि उठे सिगरे, हुतो पूना में साइत खान को थानो। जाहिर है जग में जसवंत, लियो गढ़ सिंह में गीदर बानो ॥२७॥