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शिवा बावनी

Mrwana शिवा पावनी काटि, कीट शमों के आदि में 'क' तथा सिवराज सलहेरि, समर, सुनि सुनि शब्दों के आदि में 'स' अपर का प्रयोग किया गया है। असुर राक्षस, यहां अत्याचारी मुसलमानों से तात्पर्य है । खग दन्त- तारों की गांसियां । कंटक शत्रु । अघफेंटे पापी। भरसेट-अशक्त । पर- नेटे-नवयुवक पठान । मालती सवैया। केतिक देस दल्यो दल के बल, दच्छिन चंगुल चाँपि कै चाख्यो रूप गुमान हरयो गुजरात को, सूरत को रस चूसि कै नाख्यो । पंजन पेलि मलेच्छ मले सब, __सोइ बच्यो जिहि दीन है भाख्यो। सो रंग हैं सिवराज बली जिन, नौरंग में रंग एक न राख्यो ॥२६॥ भावार्थ शिवाजी ने अपनी सेना के बल से कितने देश ध्वस्त नहीं कर डाले ? दक्षिण प्रान्त सिंह की नाई चंगुल में दवा कर मक्षण कर लिया। गुजरात की शोभा और घमंड धूल में मिला दिया। सूरत को भी उसका रस अर्थात् वैभव लेकर मष्ट कर दिया। मुसल्मानों को पंजों से चीड़ फाड़ कर मूर्छित कर दिया ! हां, दीनता स्वीकार करने पर ही कोई