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शिवा बावनी

शिवा बावनी जीत्यो सिवराज सलहेरि को समर सुनि, सुनि असुरन के सुसीने घरकत हैं। देवलोक नागलोक नरलोक गावैं जस, अजहूं लों परे खग दन्त खरकत हैं। कंटक कटक काटि कीट से उड़ाये केते, भूपन भनत मुख मोरे सरकत हैं। रन भूमि लेटे अघफेंटे अरसते 'परे, रुधिर लपेटे पठनेटे फरकत हैं ॥२॥ भावार्थ यह सुन कर कि महाराजा शिवाजी ने सलहेरि की लड़ाई जीत ली है, मुसल्मानों के कलेजे धड़कने लगे । स्वर्ग, पाताल और मृत्यु लोक में शिवाजी का यश गान हो रहा है। तीरों की गालियाँ अब भी पीड़ा दे रही हैं। शिवाजी ने शत्रुओं की फौजें काट काट कर कीड़े मकोड़े की तरह उड़ा दी और कुछ बचे खुचे शत्रु पीठ दिखा कर लम्बे हुए। रणभूमि में अशक्त पापी नव युवक पटान रक्त से भीगे हुए फड़ फड़ा टिप्पणी सलहरि नामक स्थान पर शिवाजी ने औरंगजेब के भेजे हुए दिलेरखां और इखलासखां को हरा कर पूर्ण विजय पाई थी। यह युद्ध संवत १७२६ में हुआ था। यहां सत्यनुप्रास अलंकार है । जहां बहुत से शब्दों के आदि के अक्षर एक से होते हैं वहां सत्यनुप्रास अलबार होता है। जैसे यहां कंटक, कटक,