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शिवा बावनी

शिवा बाधनो उतै पातसाह जू के गजन के ठह छूटे, उमडि घुमडि मतवारे घन कारे हैं। इतै सिवराज जू के छूट सिंहराज श्री, विदारे कुंभ करिन के चिक्करत मारे हैं। । फौजें सेग्न सैयद मुगल श्री पठानन की, मिलि इखलास खांहू मीर न सँभारे हैं। हद् हिन्दुवान की विहदद् गरवारि राखी, कैयो बार दिल्ली के गुमान झारि डारे हैं ॥२४॥ भावार्थ उधर से बादशाह औरंगजेब के मतवाले हाथियों के झुण्ड के झुण्ड बादलों की काली घटा के समान इकट्ठे हो कर छूटने लगे, तो इधर से महाराजा शिवाजी के सिंह रूपी शूरवीर गर. जते हुए हाथियों के मस्तक विदीर्ण करने लगे। बड़े बड़े हाथी विग्घाड़ने लगे। शेख, सैयद, मुग़ल और पठानों की फौजें सरदार इखलास खां भी न सँभाल सका । शिवाजी ने अपनी बड़ी तलवार के बल से कई बार दिल्ली का गर्व खर्व कर के हिन्दुओं की मर्यादा ज्यों की त्यो रक्खी। टिप्पणी संवत १७२६ में सलहेरि की लड़ाई में इखलास खां मुग़लों का सेना- पति बनाया गया था। ठट्ट झंड। करिन के हाथियों के । कुंभ-मस्तक । मीर=सरदार । विहाबड़ी। कैयो काई। ७