यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२
शिवा बावनी

२२ शिवा बावनी खान पाने के कारण शिवाजी ने क्रोधित होकर बादशाह सेन तो सलाम हो किया और न नन वचन ही कहे। उसटे इस अपमान से सुब्ध होकर वह बादशाह से मनमानी बातें कहने मगे, जिससे सारे दरबारी लोग भय के मारे कांप उठे। शिवाजी का क्रोध से साल मुंह देख कर औरंगजेब का चेहरा फीका तथा सिपाहियों का पीला पड़ गया। टिप्पणी यहां विषमालद्वार है । अनमिल वस्तुओं वा घटनाओं के वर्णन में इस अलकार का प्रयोग किया जाता है। खरो कियो-खड़ा किया । जारिन-पंजहज़ारी आदि छोटे छोटे सरदार। वलकन लागो-मकने लगे। जियरे जी। पियरे-पीले। राना भो चमेली और बेला सब राजा भये, और ठौर रस लेत नित यह काज है। सिगरे अमीर श्रानि कुंद होत घर घर, भ्रमत भ्रमर जैसे फूल की समाज है। भूषन भनत सिवराज बीर ही देस, देसन में राखी सष दच्छिन की लाज है। त्यागे सदा षट-पद पद अनुमानि यह, अलि नवरंगजेब चंपा सिवराज है ॥१७॥ भावार्थ - भूषण कहते हैं कि औरंगजेब रूपी भौंरा प्रत्येक स्थान पर मैंडराता हुमा रस ले रहा है, अर्थात् जगह जगह के