भुलाई सुधि पान की | काम ने करेजा रेजा रेजा किये काटि कांदि
कासो कहौ वेदन विकलताई प्रान की ॥ ग्वाल कवि पीरक न
कोऊ अपनो है बीर धीरज धरौ मै विधि कौन कवितान की । हाइ
परदा में चुरियान की खनक तैसी छनक छलान की झनक वि-
छिवान की ॥ १ ॥ कारचोष कीमैति के परदा चमकदार चहूँघा
लुनाई फैलि रही ज्योति ज्वाला मैं । फरस गलीचन के बीच
मसनंद तापे मखमली गादी गोल गुलगुली गाला मैं ॥ ग्वाल–
कवि आला सेजवंद सेज सुंदर पै आला में मसाला धरे गरम
रसाला मैं । चिपटि लला ते चित्रसाला में सु बाला आलू सौतिन
हुसाला दिये लपटि दुसाला मैं ॥ २ ॥
जमुना समीर तीर भरै गई नीर बीर मीन मन मोद मोहि दपदि दूपेटि जात । फैले हैं सुकेस आसपास ते सुवेस लाख विरही भु जंग जानि आनि आनि मेटि जात ॥ भनै गुनसिंधु राजै कंजन स– रोज भरे सहसा समेटि माँझधार गरगेटि जात । जहाँ जहाँ कंज
रहैं दिन को प्रकास भरे मेंरो मुखचंद जानि संधूटी समेटि जात ॥ १ ॥
दोहा―सींग वड़ो डाँड़ो वड़ो, खर चरि रहे मौदाय । गोसाँई घूरा खरनै, रॉभत राख उड़ाय ॥ १ ॥ गोसाँई गहि जोतिये, नाकनि मोटी नाथ । आगे पगही खैचिये, पाछे पैनी हाथ ॥ २ ॥}}</poem>}}
चंद सम फैलो तेज प्रबल प्रचंड देखि दंड आरिंदबूद खंड खंड घावते । थाप उमराय देस देस के झराष आवै ताप की त– राप ड्यौढ़ी लाँघन न पावते ॥ भनत गनेस केते श्रदव दवे से
१ हमदर्द । २ बहुमूल्य । ३ बंद होजाते हैं । ४शत्रुओं के समूह ।