पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/५७

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज न है । एते पर बार बार मोहिं को कसत हो । जाउ जू सिधारी लाल जहाँ लाग्यो नयो नेह बोलाचाली नादि एक गाSत्तौ वसत हो ।१ ऊदी होति नीलमनि बरनि सकत कौन चुनी छिपि जाति नीठ नीठ डीट ना प, । जानि जानि जौहरी जवाहिर धरे हैं ढ़ाँषि पीरे होत पेंग ली भगेई छवि को धर ॥ लेत देत बनि है न घटि है हमारे पल छापनी अनोखी यह तेरहो गुना करें । बाल हाथ मुकता ग्रवाल सुम है दे जात काशीनाथ रजत रुपैया होत मुहरें ॥ २ ॥ . ७५, कन्या भ्रू वैस छपे । चलत सेन महि उगत होत उच्छलित सिंधुजल । कंप से स फन सहस धरत अकुलाय धरा बल ॥ कमपृष्ट दलालत परत दिगदातिन खलभल । कोल द सन भरपूर धसत मसकत बच्छस्थल ॥ उड़े रेड रवि पिग भने कान्ह सकि सप्ततेल । श्रीरामचन्द्र गढ़ लंक पर चढ़यो सजिन क-िनच्छल । १ ॥ ७६. कविराज कवि कोड अटकों पुख स्वाद कल कोट मोहन या मन को भटकाये । झोउ अटको सुखसंपति में कोड दंपति अंक रहे लपटाये ॥ या दुनिया बहु भाँति फंसी कघिराज विचार कहें गोहरराये । राम भज परिनाम यही नहिं जात हया तन लात लगाये ॥ १ ॥ मेरु सकसेना श्रीवास्तव भटनागर हैं रोशन कलम रहै सबकी सचार की । गौर अशठाने जग जाहिर बखाने बहु वचन अडोल बात करें उपकार की ॥ माथुर की महिमा कही न जाति कविराज १ सँग।२ मतल से पाताल तक नीचे के सात लो।