पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७
शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज २७ नभ नावें नमी सी जराय जरी प्रभा सी खुटी सी नित खूटी परै । अरी एरी हटापटी विज्जु छटा छटी 8ी घटानि ते टूटी पड़े ।४॥ भुक्कुटी कमान तानि फिरत अनोखी कहा कहृत किसोर को कब्जल भरे है री । तेरे दृग देखे मे कान्हर डरात इत मधुंघा निगोड़ो अवै रोष पकरै है री ॥ कीरतिकुमारी के दुलारी सुभानु की मेरो कस्बो मान तेरो कहा विगरें है री । चंचल चपल ललचौहैं चैख Iदि तौलौं जौलौं गिरिधारी गिरि नख धरे है री ।।देखो याते ऐसो सफेरि ना मिलैगो कौन कौन जाने कौन से जठर झूला झूलौगे । कहत किसोर जो8 मानिहते न मेरी कही जैसे कलू वैौ तैसे नखन अरूलौगे ॥ फेरि आखिरी मै दुख तुम्हीं सहगे -आनैल दहौगे ये कगे सो कबूलौंगे । ऐसे तौ न फूलगे न बतियाँ बसूलौ हरिभजन जौ भूलौगे तो हर भाँति भूलौगे ॥ ६ ॥ एक तो दियो है तोईि मानुस को तन दूने उत्तम वरन तीजे उत्तम वरन देह । तेहू पर परम कृषा करि कृपानिधान कैरा बैरा बौरा गुंग बावरो करो न यह ॥ कहृत किसोर जोर अच्छर को आयो भयो चार कहाो पायो प्रेमपथ निज गेहूं । कि तोको अधम अभागे कृत हीन जोंदै ऐसे में न ऐसे दीनबंधु से लगायो नेह ॥ ७ ॥ चलत चपल चतुरंग जब सेना साजि तब तक दिग्गज के सीस धसकत है । डगमग चलत महीतल रसातल को कच्छप वराह पीठि सोऊ कसकत है ॥ कहत किसोर वड़े मेरु सम शूति होत सूझत अकास है न सूर ससकत है । उथलपुथल भयो लोक लोक लोकन में देखि रामचन्द्रदल सत्रु मसकत है ॥ ८ ॥ प्रात उठि मज्जैन के मुदित महेस पूजि पोड़स प्रकार के विधान जाने वोर की आवाहन आदि द प्रदबिछना करी है पाँच दोज कर जोर १ इंद्र ।२नेत्र । ३ पाप की आरा ।४ स्नान ।