४ १ शिवसिंहसरोज , C ११ छीरास्वामी, स० १६०१ में ० । इनके पद रागकल्पद्रुम में बहुत हैं । यह महाराज वल्लभाचार्या के पुत्र विट्ठलनाथजी के शिष्य थे । इनकी गिनती आष्टछाप में है । १०१ सफ़ा ॥ . १२ छेदीराम कवि, सं० १८६४ में उ० । कविनेह नाम पिंगल बनाया है । कविता में यहानिपुण मालूम होते हैं । यद्यपि यह थ हमारे पुस्तकालय में है, तथापि इनके ग्राम का नाम उसमें नहीं पाया गया ॥ १०१ सफ़ा ॥ १३ छत्र कवि, सं० १६२५ में उ० । विजयपुलावली नाम ग्रंथ अर्थात् भारत की कथा बहुत ही संक्षेप से सू चीत्र के तौर से नाना छन्दों में वर्णन की है । १४ छेम कवि (२ ) बंदीजन डलमऊ के, सं० १५८२ में ७० । यह कवे हुमायूं वादशाह के यहाँ थे । ॥ १०१ सफ़ा ॥ १ जगतसिंहू बिखेन, राजा गोंडा के भाईबन्दसं० १७६८ में ड० । यह कवि राजा गोंडा और भिनगा के भैया थे । देउतहा नाम रियासत के ताल्लुकेदार थे । शिष कवि अरसेला वंदीजन इन्हीं के ग्राम देउतहा के वासी थे । उनसे काव्य पढ़कर महा विचित्र कविता की है । बंदशुझार ग्रन्थ पिंगल में, और साहित्यसुधानिधि माम ग्रन्थ अलंकार में बनाया है । इस अलंकारी ग्रन्थ में ६३६ बरखे हैं । इसके सिवा और भी ग्रन्थ बनाये हैं । पर वे हमारे पुस्तकालय में नहीं हैं 7 १०२ सफा ॥ २ जुगुलकिशोर भट्ट (२) कैथवासी, सं५ १७६५ में ड१ ! यह महाराज मुहम्मदशाह बादशाह के बड़े मुसाठवां में थे । इन्होंने संवत् १८०३ में अलंकानिधि नाम एक ग्रंथ अलंकार का अद्वितीय बनाया है, जिसमें ९६ अलंकार उदाहरणसमेत वर्णन किये हैं । उसी ग्रन्थ में ये दो दोहे अपने नाम और सभा - " क समाचार में कद्दे ।
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