संस्कृत-कव्य पढ़कर ऐसे पण्डित हुए कि उनको नांम मलंयं तक बाकी रहेगा । इन्ही के वंश में शीतल और बिहारीलाल कवि, जिनका उपनाम लाल है, संवत् १६०१ तक विद्यमान थे । निदान चिन्तामणि महाराज बहुत दिन तक नागपुर में सूर्यवंशी भोसली मकरन्द शाह के यहाँ रहे, उन्हीं के नाम से छन्द विचार नाम पिंगल का बहुत भारी ग्रन्थ बनाया । काव्यविवेक, कविकुलकल्प- तरु, काव्यप्रकाश, रामायण पाँच ग्रन्थ इनके बनाये हुए हमारे पुस्तकालय में मौजूद हैं । इनकी रामायण कविता और अन्य नाना छन्दों में बहुत आपूर्व है। बाबू रुद्रसाहि सोलंकी और शाहजहाँ बादशाह और जैनन्दी आहमद ने.इनको बहुत दान दिये हैं । इन्होंने अपने ग्रन्थों में कहीं कहीं ' अपना नाम ,मणिलाल कहा है ॥ ८७ सफा ॥ (१)
ललित काव्य की है ।।.६० सफ़ा ।
यह कविराज एक अपने ग्रन्थ में गुमानसिंह. और अजीतसिंह की बढ़ाई करते हैं । ग्रन्थ का नाम मालूम नहीं होता ॥ ६० संफा ।।
यह कवि महाविद्वान् बड़े सन्तोपी.राजा केसरोसिंह गौर के यहाँ थे । उनके नाम से केसरीप्रकाश ग्रन्थ रचा है। इनके ग्रन्थों की संख्या साफ़ जानी नहीं जाती । जो ग्रन्र्ध हमने पाये अथवा देखे हैं, उनकी संख्या लिखते हैं । प्रथम शृङगारसार ग्रन्थ बहुत भारी काव्य है । दूसरा कल्लोलतरंगिणी, तीसरा काव्याभरणा चौथा चन्दनसतसई, पांचवाँ पथिकबोध। ये सब ग्रन्थ बहुत ही