हिस्से में पड़ा था । इस ग्रंथ में क्षत्रियो की वंशावली और अनेक युद्ध, आबू पहाड़ का माहात्म्य, दिल्ली इत्यादि राजधानियों की शोभा और क्षत्रियों के स्वभाव, चालचलन व्यवहार बहुत विस्तार पूर्वक वर्णन किये हैं । यह कवि खेल कविश्वर नहीं थे, वरन नीतिशास्त्र और चारण के कामकाज में निपुण महा शूरवीर भी थे । संवत् ११४६ में पृथ्वीराज के साथ यह भी मारे गये । इन्हीं की औलाद में शारंगधर कवि थे, जिन्होंने हमीररासा और हमीरकाव्य भाषा में बनाया है ॥ ८३ सफ़ा ॥ (१)
यह कवि सुलतान पठान नवाब राजगढ़ भाई बंदन बाबू भूपाल के यहाँ थे । इन्हों ने बिहारीखतसई का तिलक कुंडलियो छंद में सुलतानपठान के नाम से बनाया है ॥ ८५ सफ़ा ॥ ३ चंद कवि (३)। सामान्य कवि थे ॥ ८६ सफ़ा ॥
श्रृङ्गाररस में बहुत सुंदर कविता की है । हज़ारा में इनके कवित्त हैं ॥ ८६ सफ़ा ॥ (२) ५ चिन्तामणि त्रिपाठी टिकमारजिले कानपुरवाले सं० १७२६ में उ०। यह महाराज भाषासाहित्य के आचार्यों गिने जाते है । अन्तरवेद में प्रसिद्ध है कि इनके पिता दुर्गा पाठ करने नित्य देवीजी के स्थान में जाते थे । वह देवी जी वन को भुइयां कहती हैं, टिकमापुर से एक मील के अन्तर पर हैं। एक दिन महाराजराजेश्वरी भगवती प्रसन् होकर चारि मुंड दिखाकर बोलीं, ये ही चारों तेरे पुत्र होंगे। निदान ऐसा ही हुआ कि चिन्तामणि, धषण, मतिराम,जटा- शंकर या नीलकण्ठ, ये चार पुत्र उत्पन्न हुए ।इनमें केवल नील- कएठ महाराज एक सिद्ध के आशीर्वाद से कवि हुए, शेष तीनों भाई से