पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/४१

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शिवसिंहसरोज


५३. केशवराइ बाबू बुन्देलखण्डी (३)

छाती लागी उंचन सकोचनि सफान लागी खान लागी पान औ ओनानं रसवतियाँ । कटि लागी घटन मटन चढि जान लागी वैन लागी नटन जगन लागी रतियाँ ॥ चारु लागी चलन सुधारन अलक लागी जेबँ लागी जगन पगन लागी गंतियाँ । नैन लागी फेरन निहोरन सखिन लागी मन लागी चोरन पढन लागी पतियाँ ।। १ ॥ वाहैं घरै सुख नाहीं करै उठि आँसु ढरै अँग में अंग चोरै । हाहा करै उठि भागै धरै तुतराति लरै तकि भौंह मरोरै ॥ लाल करै हित वाल अरै हठि साल लरै गहि धातु सों तोरै । साँस भरे अति रोसै करै परि पाटी धरै फुँफुॅदी जब छोरै ॥ २ ॥

५४. केशवराम कवि

( भ्रमरगीतग्रन्थे )

दोहा-सब सायर समरत्थ हैं, मैं सेवक लघु एक । प्रकट करौं गोपिनकथा, जो देवी दे टेक ॥ १ ॥

५५. कुमारमाणिभट्ट गोकुलस्थ

( रसिकरसालग्रन्थे )

खौरि को राग छुट्यो कुच को मिटिगो अधरारस देखो प्रकासहि । अंजन गो दृगकंजन ते तन कंपत तेरो रूमंच हुलासहि ॥ नेक हितूजन को हित चीन्हो न कीन्हो अरी मन मेरो निरासहि । वावरी वावरी न्हान गई पै तहाँ न गई वहि पीय के पासहि ॥ १ ॥ बैठी जहाँ गुरूनारिसमाज में गेह के काज में है बस प्यारी । देख्यो तहाँ बन ते चले आवत नंदकुमार कुमार विहारी।। ____________________________________________________ १ ऊँची होने लगी । २ कान लगाकर सुनना । ३ सौंदर्य । ४ गिरह । ५ रोमांच । ६ बड़ी-बूढ़ी औरतों की मंडली ।