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शिवसिंहसरोज


लगे । भापषाध्य का तो इनको माप, मम्मट, घर के समान प्रथम आचार्य ससुझाना चाहिये, क्यों कि काव्य के दस अंग पहले- पहल इन्हीं ने कविमिया ग्रंथ में वर्णन किये । पीछे अनेक आचा में नाना ग्रंथ भाषा में रचे । प्रथम मधुकरशाह के नाम से विज्ञानगीता ग्रंथ बनाया, और कविप्रिया ग्रंथ प्रवीणराय पातुर के लिये रचा । रामचंद्रिका राजा मधुकरशाह के पुत्र इंद्रजीत के नाम से बनाई, और रसिकप्रिया साहित्य और रामअलंकृतमंजरी पिंगल ये दोनो ग्रंथ विदुज्जनों के उपकारार्थ रखे । जब अकबर बादशाह ने प्रवीण राय पातुर के हाजिर न होने, उदूलहुकुमी और लड़ाई के कारण राजा इंद्रजीत पर एक करोड़ रुपए का जुरमाना किया, तव केशवदासजी ने छिपकर राजा बीरबल मंत्री से मुलाक़ात की और बीरबल की प्रशंसा में "दियो करतार दूहूं कर तारी यह कवित पढ़ा । तब राजा बीरबल ने महाप्रसन्न हो जुरमाना माफ़ कराया । परंतु प्रवीणराय को दरबार में आना पड़ा ॥ १८ सफ़ा। ।

२ केशवदास (२) ।

सामान्य कविता है ॥ २१ सफ़ा ॥

३ केशवराय बाबू बघेलखण्डी, सं० १७३६ में उ०।

इन्होंने नायिकाभेद का एक ग्रन्थ बहुत सुन्दर बनाया है और इनके कवित बलदेव कवि ने अपने संगृहीत ग्रंथ सत्कविगिरा विलास में रक्खे हैं ॥ २२ सफ़ा ॥

४ केशवराम फवि ।

इन्होंने भ्रमरगीत नाम ग्रंथ रचा है ॥ २२ सफ़ा ॥

५ डुमरमणि भट्ट गोकुलनिघासी, सं० १८०३ में उ०।

यह कवि कविता करने में महा चतुर थे । इन्होंने साहित्य में एक ग्रंथ रसिकरसाल नाम का बनाया है, जिसकी खूबी उसके अव-लोकन से विदित हो सकती है ॥ २२ सफ़ा ॥