३४ अगर कवि, . १६२६ में उ०।
नीति-सम्बन्धी कुंडलिया, छप्पय) दोहा इत्यादि बहुत बनाये हैं ॥ ८ सफ़ा ॥
३५ अग्रद्धालु गलता, जयपुर-राज्य के निवासी, ० १५६५ में उ० ।
इनके बहुत पद रागसागरोद्भव-रागकल्पद्रुम में हैं । ये महा राजा कृष्णदास पशुआहारी के शिष्य थे, और इन महाराज के नाभा दास भदंगाल ग्रंथक्रता शिष्य थे ॥ १८ सफ़ा ॥ ३६ अनन्यदास चकदेवा जिले गोंडाबाती ब्राह्मणलं० १२२५ में उ० ।
महाराजा पृथ्वीचन्द दिल्लीदेशाधीश के यहाँ आनन्ययोग नाम ग्रन्थ बनाया है ।१४ सफ़ा ॥
३७ आसफरनदास कछवाह राजा भीमसिंहू नरवरगढ़ बाल के पुत्र, सं० १६१५ में उ०।
पद बहुत बनाये हैं, जो कृष्णानन्द व्यासदेव के संग्रहीत ग्रंथ में मौजूद हैं 1 १४ सफ़ा ॥
३८ आमरसिंह हाड़ा जोधपुर के राजा सं० १६२१ में उ° । यह महाराज अमरसिंह श्रीहाड़ा वंशावतंस नूरसिंह के पौत्र हैं। जिन सूरसिंह ने छःलाख रुपए एक दिन में छः कधियों को इनाम में दिए थे, और जिनके पिता गजासिंह ने राजपूताने के कवियों को धनाधीश कर दिया था। राजा अमरसिंह की तारीफ़ में जो वन वारी कवि ने यह कवित कहा है कि ‘‘हाथ की बड़ाई की बड़ाई जमधर की ?"सो इसकी बावत टाडसाहव की किताब:टाडराजस्थान से हम कुछ लिखते हैं। कट हो कि राजा अमरसिंह हाड़ा महा गुणग्राहक और साहित्य शस्त्र के बड़े कदरदान और खुद भी महाकवि थे । इन्हीं महाराजा ने पृथ्वीराजरायसा चन्द्रकवि-कृत को सारे राजपूताने में तलाश कराकर उनहतर खएड तक जमा किया, जो अब .सारे राजपूताने में बड़े-बड़े पुस्तकालयों में