पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३८६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिवसिंहसरोज दिल्ली से तख्त है है बख्त नामुगल कैंसो है है ना नगर कहें आगरा नगर ते । गंग से न गुनी तानसेन ते न तनवन्द मांन ते न राजा ों न दाता वीरघर ते ॥ खान खानखाना ते न नर नरहरि टू ते है ना दिवान कोऊ बेडर टोडर ते। नवो खएड सात दीप सात हू समुद्र वीच है है ना जलालुदीन साह अकबर ने ॥ २ ॥ ८१८ हजारीलाल त्रिवेदीआरतीगंज सोरठ--यातन हरियर खेत, तरुनी हरिनी चरि गई । अब हूँ चेत अचेत, आंधचरचरा घचाइ ले १ ॥ ८१६ हितनंद कवि दारिदकदन गजबदन रदंन एक सदेन हद न बुधि साधन सुधा के सर । घूमकेतु धीर के धुरंधर धबैंल धाम हेम के भरन सरनाम ना निधनकर ॥ लम्बोदर हेमवतीनंद हितनन्द भाल चंद कंद आर्नंद विद्यध चंदनीय वर । सदा सुभदायक सकल गुन लायक सु जै जै गननायक विनायक विघनहर ॥ १ ॥ ८२०. श्रीहितहरिवंशजी स्वामी प्रद आजु निकुंज मंजु में खेलत नवलकिसोर अरु नवलकिसोरी । अति अनुपम अनुराग परस्पर अति आभूत भूतल पर जोरी ॥ विंढम फटिक विविध निर्मित घर नब कपूर परॉग न थोरी । कोमल किसलय सैन 8 पेसल ता पर स्यामल निघिसत गोरी ॥ मिथुन हास परिहास परायन पीक कपोल कमल पर जोरी । गौर स्याम भु कलह मनोहर नीवी वंघन मोहन ठोरी ॥ याँ उर मुकुर विलोकि अपनौ विभ्रम विकत मानकृत भोरी। चिडैक सुचारु मलोइ घोधित प्रिय प्रतिबिंम्ष जनाइ निहोरी १ दाँत ।२ घर । ३ उज्ज्वल । ४ धूर ।५ ठोढ़ी ।