पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३७४

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शिवसिंहसरोज ५७ ही सोभनाथ कहूँ कहें द हूं न करिगे । सोर भयो घोर चहूं ओर नभएडल में आये घन आधे घन आय के उपरिगे ॥ १ ॥ , ७८५. सन्त यवि (२) सेर सम सील सम धीरज सुमेर सम सेन सम साव जमाल. सरसाना था। करन कुबेर काल कीरति कमाल करि तालेवन्द मरद बदमन्द दाना था ॥ दरबार दस परस दरशंसनको तालिब तलब कुल आलम वखाना था । गाहक गुनी के सुखचाहक दुनी के बीच सन्त कवि दान को खजाना खानखाना था ॥ १ ॥ ७८६सहजराम सनाढय, धुवावाले (२ ) ( प्रहलाद चरित्र ) रामभजन को कौन फलविद्या को फल कॉन । घा नफा विचारि , विम पाँ मैं तन : १ i बरनत वेद gरान बुधसिंघ विवि सनकादि । ये बाधक हरिभक्ति के, विद्या वित बनिताद ॥ २ ॥ खाय मातु मेदक कक, परै बदन विच आइ । जर अग्नि की ज्वाल सों, जीव विफल है जाइ॥ ३ ॥ ७७श्यामशरण कवि ( बरोद थापा ) मिथुन मीन धन जानिद्विभाष कन्या-सहित । संग सुपुस्ा यानि, परसासद्धिदायक सदा ॥ १ !! ७८८. संतरमा बनियावरिपुर वाले सेस न पाईि पार, रामजन्म उत्सव महा। । आई करन जुहार) दमइल तिलोक की ॥ १ ॥ . हरन पापदुखजाल, पुक्तिदानि सरजू नदी । कियो भन को काम, सेवक सीताराम तहूँ ॥ २ ॥ ७८६. शिवप्रसन्न कवि, रामनगर के, शाकद्वीपी ब्राह्मण धौरहर धौल ६ थाप टू धन जामें चहुंघा दुआर के सुगन्ध