पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३७३

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शिवसिंहसरोज

iशवसिंह सरोज प्रया चराचर चामीचर चामीकर थामा | नम्बर नौ बरपै मतल मदार देखौ ग्र भैर लो लागे मेघडम्पर सुदामा के ॥ १ ॥ ७८१. लामंत कवि सुरंग कैदि .जे में डुरंग को लगाय के चक्यो बिगराज ल थे। चिदेश कौन था । बड़े समूछर ज्य चुराछ ओरछोर ला सुभाष इंलि से साँ उ व रि सेल को औरै ॥ समन् हाथ जोरि है अमीर दत तोरि के उखारि मारि िभूमि सी गयन्द गेंदसे करें । बघे न सिंह सान्दू न सिंह बापार लाँ नौगसादि वीर के सि कार बीच जो परे ॥ १ ॥ ७८२, लेम कवि । जब ते गुराल मधुबन को सिधारे थाली मधुबन भय मधु द- वन विपम ली । सेन है सारिका सिखएडी खट्ट लुक मिलि के कनेस डीनों कलि दीफदम सों ॥ जामिनीबन यह जामिनी में जाए जाम बचिक को जुगुति जनचें टेरि तम साँ । देह कारी किरच करेजोकियो चाहत है काग भई कोयत कगायो करै हम सौं1१त। ७८३ . श्याम लाल कधि राजा राव राजे बादसाह से जहन जाने हुकुम न माने ते हुकुम तर । हैं । पूर दीर संगन में सुघर मसंगन में रीति एस रंगन में आति ही बखाने हैं ॥ स्ामल टुकवि नरेस उमरा अगिरि तुम से न ठप कोऊ प्राज के ज माने हैं । हम मरदाने जानि विद बखने पर दरें चोबदार हैं साहब जनाने हैं ॥ १ ॥ ७८४. शोभनाथ द वि . दिसि-विदिसान ते उमड़ेि मदि लीनो नभ छोरि दिये धुरखा जासे बह जरिये । डडहे भये झूम रश्चक दवा के गुन कुहूकुहू योरा पुजारि मोदू भरिगे ॥ रदि गये चातक जहां के तहाँ देखत )

१ सुवर्ग । २ आकाश् । ३ प्रकाश ।