शिवसिंहसरोज | १६ |
४२.३उड़ाराम शाह्मण अवस्थी पचरुवा इलाके हैदरगढ़
( ब्रह्माबिलास ग्रंथ )
दोहा- दोसंत सत दस आठ गत, ऊपर पाँच पचास । सावन सित द्तिसोम कहे, कथा अरंभ प्रकास ॥ १ ॥ गनपति दिनपति पद सुमिरि, करिये कथा हिय हेरि। ब्रह्मविलास प्रयास विलु, बनत न लागे देरि॥ २ ॥ बानी इच्छाराम कृत, विप्र वरन तन जानि । पढ़िए सज्जन समुहि हिय, देवगिरा परमानी ॥ ३.॥ विप्र सुदामहि देवत्ता, सूची वांनी तेहि केरि । आंधन सुने दूपन नहीं, भूपेन हरि हिय हेरि ॥ ४ ।। नर बानी फीकी यदपि, बनें ब्रह्ममय जानि । सड समुशि आदर करने ज्ञान आयी अनुमानी।।५॥ बड़ गरूर कवि होत हैं, बादशाह दिलदौर । लूटि जात नर नगर पुर, छंद सैन सजि डोर ।।६॥
४३. ईश कवि
एकै करै औट पट औठ कर ओट करि ए जे निथर घट चोठहि बचावतीं। एक निरसंसक एक लागती यु. बंक तक एके जे मयंक-मुखी लकदि लचावतीं। ईश कहैं केसरि गुलाव नीर घोरि घोरि जोरि जोरि मुंड रंग घुमी मचावती । देतीं गाल गुलचा गुलाल हि लपेटि मुख दे दे कर ताली नंदलालहि नचावतीं ।। १ ॥
४४.इंद्रजीत कवि
चहचही चटकीली चुनि चुनि चतुरी सौ चोखी चारु चाँदनी. की रंगी रंग गहरे । कंचन किनारी ता पे लागी छोर लौ हैं खुली दामिनी सी गोरे गात प्यारी सारी पहरे ॥ इंद्रजीत धनुष
१ परिश्रम ।