पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३३३

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शिवसिंहसरोज

३१४ शिवसिंहसरोज

मानो करि हीर कोक कीर स्मृग इन्दु आ0ि वाँधि राख्य जालदार पींजरे में आानि के ॥ ३ ॥ द६६५, वाहिद कवि सुन्दर सुजान पर मद मुसकान पर बाँसुरी की तान पर टराई ठगी है । मूति विसांज पर कश्चन की ताल पर खजन सी चाल पर बौरन खगी रहै ।॥ धनुमैन पर लने जुग नैन पर युद्ध रस वैन पर वाहिद पगी रहै । चश्चल से तन पर सॉवरे बदन पर नन्द के कॅदन पर लगन लगी रहै ॥ १ ॥ ६६६ श्रीपति कचि, पयागपुरनिवासी जल भरे गूं. मनो मैं रसत आइ दस दिसान में दामिनि लों लये । टूरिवारधूसरित धूपसे धुधारे कोरे धारे पुरखानधार्थी छवि साँ छये छये (1श्रीपति सुगान .घरी यरी घहस्त तावत आतन तन ताप सों तये तये । लाल घिन कैसे लाज चादर रहेंगी आघ कादर करत मोहेिं वादर नये नये ॥ १ ॥ मदई कोयल मगन है करत कू जलमई महा पग परते न मग में 1 विज्जु नावें घन में विरह दिय वीच नाच मधु नावें ब्रज में मयूर नाचें नग में ॥ श्रीपति सुवि कहै सावन सुहाघन में आघन पथिक लागे आनैद भो अँग में। दह छायो मदन अचेह तम- छिति छायो मेह छायो गंगन सनेह छायो- जग में ॥ २ ॥ ( काव्यसरोज ) फूलन के मग में परत पग डगमगें मानो सुकुमारता की बेलि. विधि वई है । गोरे गरे बसत लसत पीक-लीक नीकी पुखऔष रन छपेस छiवे औईहै ॥ उन्नत उरोज औ नितम्ब्रभार श्रीपति टूट जाने परै लर्क संक चित्त भई है । या से रोसमात मिस सरग छबी है- त्रिवली की डोरि गाँठि काम बंागवान दई १ अभेद्य अंधकार ।२ चंद्रमा । ३ कमर ।