पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३२७

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शिवसिंहसरोज

से ० ८ शिवसिंहसरोज बिहार वदा पीत तारो है ॥ तेलिया तिलकदर तुरकी दरियाई ‘टोष प्रबलख अवस्था अपरान कुलवारो है । जारद जरद कर नागारनि सून धूप लछमनासिंह छत्तिस तुरंग रंग न्यारा है ॥ १॥ द८२. लीलाधर कवि ' . ) ! जानि तौ परैगी जब काहू की परेगी दीटि रहि जह द्वान को बोलिवो औौ ढाँकिवो । लीलाधर कहै कार्य परेंगे तेिहारे हुग भलो ना सयुझि लोकलीकन को नाकिबो !॥ तूरन में ताप हू है। पूरन सो पाय ब्रज भूरन हजारन को रहि है फॉकियो । सोकन करगी तन पोपन मिटेग सब दोपन को पूल है झरोखन को झाँकियो ॥ १ ॥ तारे तुम औयक कुंवारे काज बैो अघ भारे भुवभार के उतारे जब जंहों में । लीलाधर हरें गुर रहियो चितेरे भूरीि परियो न भरे गीध गनिका गनैहों में ॥ कह कहां बारबार. दीनन के यार ये आपार पारावार जाके पार जत्र जैहों मैं। खगपात वाहवरे जगत निवाहवारे चारे वहशारे वाह रे तव झूहों मैं ॥ २ ॥ दसन की चंड चोट आतिन ढक कर दलित आंदल अरिदल दगाबाज हैं । दीह दरखत जरचुर से उखारिचे को स्वनपबन गहेअलख इलाज हैं ॥ जिनके दस दिगईंती मंद घिन होत लीलाधर कवि गुरदंती सिरताज हैं । अगर आडंबर हैं। जंगी आनखेगी पारवारपूर संग संगजी के गजराज हैं ॥ ३ ॥ द८३. लच्छू अधि केकी कि कूक पिफी की पुकार चर्वी दि िदादुर दुन्दि मचायो । भूमि हरी चम चला अरु स्याम घटा जुरि अंदर छायो । । ऐसे में आवन होइ लस अवता ,लावि लाल सैदस पटायां । वन को पग भो बिरहा ग्रहो मनभावन सावन आायो ॥ १ ॥ हैं ।s