पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३११

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९२
शिवसिंहसरोज

२४२ शिवसिंहसरोज जन रघुनाथ के नाथ सोई जो सजीवनसार सुधा रस कोरी । रकार श्रीराजकुमार उदार मकार सो थीमिथिलेसकिसोरी ॥ १ ॥ ६४८रज्जव कवि दोहा-रज्जब ज़ाकी चाल सों) दिल न दुखाया जाय । इहाँ खलक खिजमति करें, उत है खुसी खुदाय ।१। ॥ साध सराहै सो सती, जती जोपिता जान । रज्जब साँचे यूर को, बैरी करत बखान ॥ २ ॥ ६४३. रखुलाल कवि आई एक प्यारी गौने सोने से सरीर नौवें रूप रस रति के म कास दरसात हैं । अतर सुगंध रंग भूषन वसन वोरे लाल जंग डेरे मनों फूले जलगाँत हैं ॥ कवि रखुलाल सेज आये सुखदान जा नखसिख छवि के छरा से छहरात हैं । अंकुरित जोबन हुये ते लंक संकुरत इंदरत जंघ अंग कुरत जात हैं !! १ ॥ ६५०. रघुनाथ उपाध्यायजैनपुरवासी (निर्णयमंजरी ) दोह-मंगलमूरति सिवसुवन। श्रीगनेस हेरांव । बानी बाक सरस्वती, श्रीसारद जगदंव ॥ १ ॥ इन कॉं प्रथमहैिं आमिरिके, बहुरि इष्ट करि ध्यान । उर थरि गुरुपदशभुगकरों कछुक निमन 1२i। ६५१. रसरंग कधि लखनऊवाले। नंदलता लखी या विस मै जहाँ जाति नशेलिन की अदली है। यंग विक्षित भूपन ते सब रंग रंगे पट सोभ सली है । ता विचनील पटो पब्रेि रंसरंग रले गले एकली है । जात चली मुस्कात गली में सर्वे विधि सगे भानलती है ।१॥ १ सेवा । २ सलोने । ३ कमल ।