पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२९४

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२७ शिवसिंहसरोज पाछे सिव धावत फिरें, किये क्रोध मुखमूल । भावी बस कठिन है, छूट न संधु त्रिशूल ॥ २ ॥ ५६६.मीरा बाई तिौर की रानी दोहा-रसन कटे आनहि ठे, झूठे आान लखि नैन । सन फटें ते सुने विन, श्रीराधा जस वैन ॥ २ ॥ कवित्त । कोऊ कहीं कुलट कुलीन अकुलीन कहीं कोऊ कह अंकिनी कलंकिनी कुनारी हों। कैसे सुरलोक नरलोक परलोक सब कीन में अलोक लो लोकन न्याहौं॥ तन जाहु मन जाहु देव गुरुगन जाहु जीभ क्षे न जाहु टेक टरत न टारी हाँ। बेंदांबनवारी गिरधारी के मुकुट पर पीतषटवारे की मैं मूरति मैं वारी हाँ1 १ ॥ ५६७. महेशल ब्राह्मणधनौली ज़िला बाराबंकी ( काव्यसंग्रह ) दोहा—गनमुख सुखकर दुखहरन, तोहैिं कहीं सिर नाय । की जास लीओ विनय, दी ग्रन्थ बनाय ॥ १ ॥ जगदीस्वर को धन्य जिन, उपजाया संसार । ब्रिति जल नभ पावक पवन, करि इनको विस्तार ॥ २ ॥ पहि दास) दासहि त्पति/ पघि तुन, रैनहि पपान । जलधि आप सरलघु सरहि,उदधि करें छनपान ॥ ३ ॥ ५६८मनभावन त्राह्मण मुंडियावाले ( खंगाररत्नावली ) फूली मंजु मालतीन पै मलिन्द झूद वर सुरभि लपेयो मंद मधुर है समीर। ललित लवंगन की वल्ली तमाल जाल लातिका कदंबन की देखे दूरि होत पीर ॥ बौंड़ी गुंज पुंज आति झड़ी कि ज्ायो बन केकीकुल कलित कथत एक बोलें कीर। भरे प्रेम स्यामा स्याम गरेभुज धरेन्दोऊ हैरे-हरे डोलत: तनितनूजातीर॥ १ ॥ १ हवा ।२ धीरेधीरे ३ यमुना ।