पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२९१

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शिवसिंहसरोज

१७२ शिवसिंहसरोज - मीनसरसन धूप की रेख मलू सरोवर कम्यु भुलाने । ऐसी भई नहीं है सुख में नहीं होइगी नारि कहा कधि जाने १॥ अलंकार छन्द काष नाटक को है अगर राग रागिनी भंडार घानी को निवास है । कोकफारिकान खाता पंकज को कोंरेंस मान निकसत जामें Iाँति भाँति को सुवास है ॥ जून से झरत बानी बोलत मलूक प्यारी हँसनि में होत दामिनी को परफास है । ऐसो पुख काको पत्र दी प्यारे लाल जामें कोटि कोटि हावभाव को विलास है ॥ २ ॥ कै राहुडरते धरी है चन्द ढाल विवि कैधों राहु बैरि रखो चन्द्रमा को आाइ मैं । कैधों तमभूमि में मलूक प्रेम की कसौटी के विधि पब्वेि की पाटी गढ़ी चाइ के ॥ कैधों आादिरसे की बनाई “मै क्यारी भली फैधों मेष-घट रही चन्द्रमा पै छाइ कें। सुंदर मुहावनी है चित्त की डरावनी है बटपारी पाटी प्यारी बैठी है बनाइ के ॥ के ॥ ५८. मीररुस्तम कवि जहाँ अर्थ निज धर्म छूटे सकल भर्म सुभ कर्म स्खाद स्वजय जय प्रकासी । सुगम की अगम है यगम की कथा नित नगम पुरसरी पान दोर्ष बिनासी ॥ पड़े पंडित वेदविद्या साही परम हंस दंडी अखंडी सन्यासी 1 फहै मीररुस्तम जहाँ मीत नायम यु चल चित्त चतु चित्त चल चित्त कासी ॥ १ ॥ ५८७महम्मद कवि । मन मुलुक खलक तहसील करन तन परगन सुख अखत्यारी । बनी आदम आदि कुदुम ढंग से चल तेरे फलसवारी ॥ हौदा हूल महम्मद कुंभ महाकर जयंत कुंजीर वहारी। तेरी जरख पियारी बह जारी दिल्लवर खूवी हुसननगर फ़ौजदारी\१॥ १ घर । २ भीतरी हिस्सा । ३ उपा। ४४गाररस। ये दोनों ।