पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२८९

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शिवसिंहसरोज

२७० शिसिंहसरोज ५७७, मोती लाल कवि ए आानि नीरज के दल खियान तारे देख़त निहारे पे पड़े न पार्टी पलकें । एके आानि दाड़िम दसन दुति मान ए श्रीफल उरोजन मिलावै कौंलकल ।L मोतीलाल दे भेस कुच भुजपूल तऊ दायेि अनोखी चिंगुनी की छवि अल कहाँ ते हौं आई इहि और धूलि माई मोहिं ब्रज की लुगाई लोग देखि देखि लल हैं ।५१t ५७८सुर ली कवि अरुनाई ऍड़िन की सचछ बैं. छाजत है चारु छवि चंद ग्राभा नखन करे रहें । मैगत महावर गुराई खुध रजत हैकनक वरन गुरुवनक धरे रहें। ॥ सु सम जोति सनि राहु केतु गोद ना है मुरली सकल सोभा सौरभ भरे हैं । । नवों ग्रह भाइन ते । सेवक सुभाइन से राधा ठकुराइन के पाँइन परे हैं ॥ १ ॥ ५७६. मोतीरम की पीड पीउ करत मिलें जु आज मोहेिं पीट सोने चोंच चातक मढ़ाऊँ आति आादन । कटिन कॉषिनके कंठन कटाई ड॥ देत दुख दादुर चिराइ डाऐं दादरन ॥ मोतीराम झिल्लीगन मंदिर चंदाइ डालें वधिक बुलाइ बाँधों बयत की विदरन Iविरह की ज्वालन सों जिरह जराइ डरी साँसन उड़ाऊँ बैरी नेदद बादन ॥ १ ॥ ५८०. मनसुख कवि सतोगुन मूरति के को गुन वखांनि स चरन प्रताप पसत ही सिंगला तरी । गनिका पधारी भृगु लात उर धारी नहीं भीलनी घिचारी निरखारी विपढ़ा खरी ॥ अधूम उधारे मड आगने विचारे मनसुख पचि हारे मुनि केत करता करी । दूध पी के माइ के जु काहू पूत ना करी जु विष पी के नन्दंच के एप्त पूतना करी ॥ १ ॥. । १ बृहस्पति ।२ मेर । ३ अइया ।